रेणु गुप्ता की लघुकथाएँ एक सजग प्रहरी के समान चौकस सामाजिक विडम्बनाओ को चित्रित करती हैं – कान्ता रॉय लेखन की दुनिया में एक अलग प्रकार का परिवर्तन दिखाई देने लगा है| साक्षरता अभियान नेजिस तरह से पढ़े लिखों का समाज तैयार कर दिया है, वह सुखद है| लोग अधिक से अधिक पढ़ रहें हैं, इसलिए समाज की वैचारिक पृष्भूमि मजबूत हुई है| अपने उदगार प्रकट करने के लिए लिखना भी बढ़ गया है, और जब चीजें लिखी जायेंगी तो उनका प्रकाशन तो लाज़मी है| आज वरिष्ठ लेखिका रेणु गुप्ता की पाण्डुलिपि मेरे हाथ आई है| पढ़ रही हूँ और संग संग गुन भी रही हूँ| अखबार, पत्र-पत्रिकाओं और पुस्तकों का सुनहरा दौर, सत्तर के दशक में पाठक के लिए प्रिंट मीडिया एक मात्र साधन था। पाठ्यक्रम की पुस्तकों की ओट में कॉमिक्स, कहानी, उपन्यासों का मन-मस्तिष्क पर पड़ते प्रभाव से जो बदलाव देखने को मिला, उसमें चमकदार जिंदगी की ख्वाहिश प्रमुख थी। उच्च शिक्षा और करियर की चिंता की गलियों में सह शिक्षा के दौरान अपनी पसंद के जीवन साथी के चुनाव में हस्तक्षेप करने के साहस से गार्जियनशिप उर्फ बच्चों के भाग्य विधाता का धीरे-धीरे प...