दिल्ली लघुकथा अधिवेशन 2019
लघुकथा पर एक राष्ट्रीय अधिवेशन
प्रथम सत्र
लघुकथा शोध केंद्र भोपाल और विष्णु प्रभाकर प्रतिष्ठान के पदाधिकारियों द्वारा एक विशाल लघुकथा का अधिवेशन दिल्ली में आयोजित किया गया। यह आयोजन गांधी शांति प्रतिष्ठान के विशालकाय हॉल में आयोजित किया गया ।जिसमें एक साथ 300 लोगों के बैठने की व्यवस्था थी। मंच भी विशाल ,कार्यक्रम विशाल था और सबसे बड़ी विशेषता इसमें यह दिल्ली गई की प्रारंभ से लेकर अंत तक श्रोता समूह का धैर्य देखने लायक था। 9 घंटे अनवरत कार्यक्रम चलने के पश्चात भी 70% सीटें भरी हुई थी।
इस कार्यक्रम में मैं एक प्रतिनिधि के रूप में सम्मिलित हुआ था। मग सम साहित्यिक कोर कमेटी के सदस्य गाडरवारा के श्री सुशील शर्मा जी को इस कार्यक्रम में सम्मानित किया जाना था। जो किसी कारणवश दिल्ली नहीं आ पाए थे । उनके उस निवेदन पर की मैं कार्यक्रम में उपस्थित होकर उनका सम्मान ग्रहण कर लूं। मैंने इस कार्यक्रम में सहभागिता करने का मन बनाया। ३५ वर्ष के समयकाल में ऐसा अवसर मेरे साथ कई बार हुआ गई।
10:00 बजे यह कार्यक्रम प्रारंभ होना था। लेकिन यह कार्यक्रम 10:45 पर प्रारंभ हुआ।दिल्ली में यातायात साधन कुछ इस तरह से हैं जिसकी वजह से मैं खुद 10:55 पर कार्यक्रम स्थल पर पहुंचा। कार्यक्रम प्रारंभ हो चुका था। मंचासीन सभी अतिथि गण अपने सीट पर जमे हुए थे और इस कार्यक्रम के मुख्य कर्ताधर्ता आदरणीय कांता राय जी का प्रारंभिक उद्बोधन समाप्त हो चुका था। जैसे ही मैं वहां पहुंचा हॉल में एक किनारे बैठे आयोजन समूह के दो लोगों से मेरी मुलाकात हुई । वहां बैठी महिला ने मुझे कहा कि आप इस रजिस्टर में एंट्री कर लीजिए जिससे आपकी सहभागिता इस कार्यक्रम में हो जाएगी।आपकी सहभागिता को मान लिया जाएगा। साथ ही उन्होंने एक आई कार्ड भी दिया। जिसे लगाकर मैं कार्यक्रम स्थल की ओर पहुंच गया।
इस प्रथम सत्र में मुझे यह देखकर सुखद आश्चर्य हुआ। विष्णु प्रभाकर जी की लघु कथाओं का रचना पाठ चल रहा था। २-२ कलमकार एक साथ उनकी रचनाओं का वाचन कर रहे थे। ठीक वैसे ही जैसे मग सम के कार्यक्रम में हम देखते हैं । जहां दूसरों की रचना को वाचित किया जाता है ,और श्रोताओं से प्रतिक्रिया ली जाती है। जो भी कलम का रचना पाठ कर रहे थे उन्हें ढेर सारे तालियां मिल रहे थे। वास्तविकता यह था की रचना विष्णु प्रभाकर जी थी की थी अतः सारी तालियां उनकी रचना के लिए उन्हें है मिल रही थी। इस कार्यक्रम के साक्षी के रूप में मंच पर अध्यक्ष के रूप में डॉ हरीश नवल जी, मुख्य अतिथि के रूप में बलराम अग्रवाल, विशिष्ट अतिथि के रूप में करुणा शर्मा,अतुल प्रभाकर, तथा अनिल मीत उपस्थित थे।मंच संचालन की जिम्मेदारी संभाल रहे थे घनश्याम मैथिल अमृत जी।
इस रचना पाठ के बाद चार पुस्तकों का लोकार्पण किया गया। नीरज जैन जी की पुस्तक 'समय की दस्तक' सुश्री रूपल उपाध्याय जी की पुस्तक 'अनुत्तरित प्रश्न' श्रीमती मधु जैन (जबलपुर) जी की 'एक कतरा रौशनी' तथा सुश्री अमिता मिश्रा जी की पुस्तक *भाव का संगम* का लोकार्पण किया गया। १९७० से लेकर २०१९ तक के प्रमुख लघुकथा कारों की रचनाओं का संग्रह का भी लोकार्पण किया गया।
लोकार्पण समारोह के बाद सबसे पहले अनिल मीत जी ने बहुत संक्षेप में लघु कथा की दशा और दिशा पर अपने विचार रखे। उसी क्रम में अतुल प्रभाकर जी जी ने भी अपने विचार प्रस्तुत किए। मुख्य अतिथि के रूप में बलराम अग्रवाल जी ने अपने विचार रखे और सबसे अंत में डॉ हरीश नवल जी ने अपने अध्यक्षीय उद्बोधन दिया।
यह कार्यक्रम तकरीबन एक घंटे विलंब से आरंभ हुआ था। इसलिए आयोजकों ने प्रथम सत्र और द्वितीय सत्र को जोड़कर इस कार्यक्रम को देखने का प्रयास किया। प्रथम सत्र ११:३० पर समाप्त हो जाना था। लेकिन यह कार्यक्रम लगभग ०१:४० तक चला।
५-५ पुस्तकों का लोकार्पण किया गया जिनके पुस्तकों का लोकार्पण हुआ। वह तो सामने उपस्थित थे पर किस पुस्तक में क्या है ? इस पर कोई विशेष चर्चा नहीं हो पाई ।हां कुछ क्षणों के लिए जब मौका मिला तो मैं इन पुस्तकों को देखने के लिए वापस रिसेप्शन काउंटर पर पहुंचा। जहां मेरी मुलाकात कांता जी से भी हुई बाकी कुछ रचनाकार कलमकारों तथा मग सम सदस्यों से भी मुलाकात हुई। काव्य,गजल तथा लघु कथा पर आधारित पुस्तकों को देखने का मौका मिला कुछ की तो कीमत ₹50 से लेकर ₹600 तक थी। यह देखकर सुखद आश्चर्य हुआ की उन पुस्तकों को खरीदने वाले भी वहां मौजूद थे ।दर्शक दीर्घा में 70% महिलाओं की संख्या थी। अपने अनुभव के आधार पर मैंने विचार किया। इसमें से ज्यादातर महिलाएं निश्चित रूप से कलमकार हैं, और किसी न किसी रूप में भी इस आयोजन से जुड़ी हुई है ।
10 से 15 कलमकार थे जिनसे मेरे जान पहचान भी थी, उन्हीं में से कुछ कलमकारों आयोजन समिति से भी थे । उनके भागदौड़ से यह लग रहा था आयोजन समिति से जुड़े हुए हैं।
जहां पर मंच बना था मंचासीन अतिथि बैठे थे वहां एक विशाल प्रतिमा भारतवर्ष के राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की थी और उस पर पुष्पा हार की जगह सूत का माला टंगा हुआ था। पूरे कार्यक्रम में मुझे फूल मालाओं के दर्शन नहीं हुए न ही बुके के दर्शन हुए। किसी भी अतिथि का स्वागत फूल माला से नहीं, पुस्तकों से किया गया यह अपने में बहुत बड़ी बात है।
अनिल गीत जी, बलराम अग्रवाल जी, अतुल प्रभाकर जी तथा डॉ हरीश नवल जी को सुनने के पश्चात ऐसा लगा जैसे मैं कला संकाय के किसी विश्वविद्यालय के किसी कक्षा में एक विद्यार्थी के रूप में बैठा हूं और लघुकथा क्या होता है? लघु कथा कैसे लिखा जाता है? लघु कथा का आकार क्या होना चाहिए? कहानी और लघु कथा में क्या अंतर है? लघु कथा के मूल तत्व क्या होते हैं? लघुकथा का प्रारंभ और अंत कैसे किया जाता है? लघुकथा के विषय क्या होते हैं ? इन सब पर गहन चर्चा २ घंटे सुनने को मिला।
लघुकथा लिखने वाले इन धुरंधर कलम कारों ने 1949 से लेकर 2019 तक लिखे गए लघुकथाओं का वर्णन बहुत ही सिलसिलेवार किया। पहले क्या लिखा जाता था? कौन लिखता था ? उनका लिखा कहां देखा गया ?
इन सब पर भी विस्तार से सुनने को मिला। सबसे विशेष बात यह देखने में आया कि सभी वक्ता अपने लिखे पॉइंट्स पर ही केन्द्रित थे। अपने द्वारा बनाए गए विचार बिंदु से अंत तक जुड़े रहे। मुख्य विषय पर जो नोट वे लिखकर लाए थे उसी के आधार पर अपना उद्बोधन दे रहे थे ।कोई भी पूर्ण रूप से लिखा हुआ कुछ भी नहीं पढ़ रहा था ।इससे विदित होता है उन्होंने लघुकथा के इतिहास पर अच्छी खासी तैयारी करके मंच पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराई थी। होना भी यही चाहिए मंच की गरिमा इसी में है। मंचासीन लोग विषय गत पर अपना अध्ययन श्रोता ,पाठकों था अन्य के सामने रखें। अपने विचार साहित्य जगत से जुड़े लोगों तक पहुंचाएं।
2:00 बजने वाला था जिस प्रांगण में या कार्यक्रम हो रहा था वहां के लोगों ने आयोजकों को बताया कि 2:00 बजे के बाद कैंटीन बंद हो जाता है । अतः लंच ब्रेक कर दिया जाए ताकि सभी लोग समय अनुसार लंच ले पाए।
दूसरे कार्यक्रम के लिए आमंत्रित मंचासीन मंच पर हाजिर हो चुके थे। कार्यक्रम प्रारंभ होने वाला था यह सूचना मिली। इसके बाद उस कार्यक्रम को वहीं रोक दिया गया और आयोजकों ने आग्रह किया कि सभी लोग लंच लेकर उपस्थित हो यह उद्घोषणा की गई ताकि दूसरा सत्र पुनः प्रारंभ किया जा सके ।जैसा कि होता है लंच ब्रेक के समय लोगों ने बातचीत आपस में करना प्रारंभ किया ।उनकी जान पहचान एक दूसरे से भी हुई।
उन्हेंआपस में बातचीत करना, सेल्फी लेना, ग्रुप में फोटो खिंचवाना प्रारंभ किया ।कुछ कलाकारों ने अपनी पुस्तकों को ही वहां अपने मित्रों को देना प्रारंभ किया ।कुछ कलमकार बंधुओं ने वहां भी पैसे देकर जो पुस्तके वहां आई थी उनको खरीदना प्रारंभ किया। ढाई घंटे तक बैठने के बाद शरीर को ही कुछ अकड़न होने लगा था अतः लंच देखकर बहाने आधे घंटे का मौका मिल गया। बाहर कुछ टहलने का अवसर मिलेगा भोजन अवकाश के बाद द्वितीय सत्र के लिए मैं आकर बैठ गया।
क्रमशः जारी
सुधीर सिंह सुधाकर
राष्ट्रीय संयोजक
मग सम
दिल्ली