एक आदर्श प्रकाश स्तंभ की तरह प्रकाशमान लघुकथाएँ
एक आदर्श प्रकाश स्तंभ की तरह प्रकाशमान लघुकथाएँ
– कान्ता रॉय
क्या जन्म लेने मात्र से मनुष्य, मनुष्य
बन जाता है? नहीं. मनुष्य के आचार, विचार, संस्कार सद्भावनापूर्ण सामजिक-व्यवहार
और उपादेयता उसको सच्चा मनुष्य बनाते हैं, और एक सच्चा मनुष्य अपने सामाजिक
दायित्वों को पूरा करने हेतु अपने जीवन को उत्सर्जित करता है. यही मनुष्यता एक
सच्चा लेखक होने की पहली शर्त है. जितना सरल मन होगा, रचनाएँ उतनी ही प्रभावशाली
होगी, कारण सार्थक रचनाएँ अक्सर लेखक के ह्रदय के कोटर में जन्म लेती है और पाठक
के मन-मष्तिष्क में कहीं गहरे तक उतर कर चिरस्थायित्व पाती हैं.
श्री गोकुल सोनी का व्यक्तित्व जितना
सरल उतना ही वक्रता समाविष्ट है. वे लेखन में जिस तीव्रता से, वक्र दृष्टिकोण के
तहत, विसंगतियों पर प्रहार करते हैं, सामाजिक जीवन में वह उतने ही सरल और निर्मल
हैं. व्यंग्य के सिद्धहस्त लेखक के रूप में राष्ट्र स्तर पर उनकी अलग पहचान है,
लेकिन कमाल की बात ये भी है कि वे छंद काव्य के मर्मज्ञ भी हैं. बुंदेलखंड की
मिट्टी में पगी सौंधी महक को, उनकी कविताओं में ही नहीं बल्कि व्यंग्य और अब
लघुकथा में भी महसूस किया जा सकता है.
लघुकथा से उनका रिश्ता नया नहीं है. इस
विधा में भी वे यदा-कदा लिखते रहे हैं. नब्बे
के दशक से पत्र-पत्रिकाओं में उनकी लघुकथाएं प्रकाशित होती रही है. जहां तक
बात है एकाग्र होकर लघुकथा पर काम करने की, तो यह "लघुकथा शोध केंद्र
भोपाल-मध्यप्रदेश" की देन है. केन्द्र के उपाध्यक्ष और लघुकथा वृत्त के
सह-संम्पादक के तौर पर उनकी प्राथमिकताओं में अब लघुकथा शामिल हो गयी है, जो हम
सबके लिए मिशाल है. निरंतरता से वे पिछले तीन सालों से लघुकथा लिख रहे हैं और
आलोचनात्मक दृष्टि से भी वे लघुकथा को समृद्ध कर रहें हैं. उम्मीद है कि आने वाले
समय में श्री सोनी लघुकथा के लिए आलोचना शास्त्र भी लिखेंगे.
इस पुस्तक की लघुकथाएँ यथार्थ के काफी नजदीक हैं. लघुकथा के क्षेत्र में यहाँ पुस्तक में
संग्रहित रचनाओं में कुछ नवीन प्रतिमान सम्मुख खड़े नजर आ रहे हैं, जिनका सौंदर्य
वैविध्यपूर्ण, परस्पर द्वंदपूर्ण, जीवन के मार्मिक पक्षों के प्रभावशाली चित्रण से
स्थापित होता है. जीवन विद्रूपताओं को समझते हुए अभिव्यक्ति-संपन्नता प्राप्त करना
लघुकथाकार का उद्देश्य होना चाहिए. लेखक की आदर्श समाज की परिकल्पना ही लेखन का
आधार है एवं साहित्य का प्रयोजन भी. लेखक इस प्रयोजन के मर्मज्ञ हैं.
श्री सोनी भोपाल के साहित्यिक परिवेश में एक
आदर्श प्रकाश स्तंभ की तरह हैं, जो अपनी रचनाओं एवं आलोचनात्मक दृष्टि से
प्रकाशमान रहते हैं. आपकी रचनाओं में रसात्मक अनुभूतियां, आपके लेखकीय व्यक्तित्व
का परिचायक है. वे सामाजिक जीवन में धीर-गंभीर और मिलनसार है. कला मंदिर के सचिव
होने के साथ-साथ मध्यप्रदेश लेखक संघ की कार्यकारिणी में भी आप एक प्रमुख सदस्य
हैं. एक अच्छे मंच संचालक होने के साथ ही बेहद जिम्मेदार सहयोगी हैं. श्री सोनी लिखने मात्र के लिए नहीं लिखते हैं, वह
स्वयंस्फूर्त लेखन को सारस्वत कर्म मानते हैं. अपनी रचना के प्रति कठोर अनुशासन
व्यवहार रखते हैं. लघुकथा एरिया, दया, भला आदमी, और ‘कर्तव्य बोध’ इसका साक्षात
प्रमाण हैं.
'एरिया’ लघुकथा में एक गरीब फल बेचने
वाला, ठेला लगा कर कम पूंजी से अपने परिवार के लिए दो जून की रोटी कमाने निकलता है, लेकिन नगर
निगम से लेकर पुलिस और गुंडे के शोषण का शिकार होता है, जिनका कहना है की यह एरिया
हमारा है. यहाँ बगैर हफ्ता दिए कोई धंधा नहीं कर सकता. यह लघुकथा बताती है कि आजाद
भारत में स्वतंत्र नागरिक होने का स्वप्न धूल चाट रहा है. जिसकी लाठी उसकी भैंस ने
कानून व्यवस्था को लचर बना दिया है. ‘दया’ लघुकथा कमजोर वर्ग की व्यथा-कथा है जहां
एक लड़की चार दिन बासी ब्रेड एक लड़के को खाने देती है परन्तु कुत्ता भी उसे खाने को
लपकता है, तो कुत्ते की मालकिन, अभिजात्य वर्ग की लड़की कहती है- नो टामी नो, वह
ब्रेड तुम्हारे खाने लायक नहीं है, तुम बीमार पड़ सकते हो, तुमको फ़ूड पाइजनिंग हो
सकती है.
अभिजात्य वर्ग का गरीबों के प्रति असंवेदनशील होना जहां अखर जाता है,
वहीं मेरे पाठक मन को यह बात भी तरंगित करती है, कि वह माटी का लाल भी रोग
प्रतिरोधक क्षमता से भरपूर है और ऐसे ही जीवट बच्चे कल देश के वीर जवान बन सकते
हैं. ‘भला आदमी’ लघुकथा में एक अलग रंग देखने को मिलता है. एक गरीब आदमी भी आर्थिक
जरूरत को पूरा करने हेतु कितना चालाक बन जाता है इसको दर्शाती है यह लघुकथा. यह
समाजिक पतन की अवस्था है, जिसे लेखक ने बेहतर ढंग से चित्रित किया है. ‘सावधानी’
लघुकथा माब-लिंचिंग को केंद्र में रखकर लिखी गई लघुकथा है. 'धर्मबुद्धि' लघुकथा में एक अनदेखे गंभीर विषय को
उठाया गया है. गुरु का आचरण कैसा हो? बड़प्पन क्या चीज होती है? गुरु होना क्या
है? एक नए दृष्टिकोण से लेखक ने इन सभी प्रश्नों के उत्तर ‘धर्मबुद्धि’ लघुकथा में
समाहित किये हैं. शीर्षक पढ़कर धर्मबुद्धि के साथ
नष्टबुद्धि भी दिमाग में कौंधता है, अपने हित में कोई बात न होते देख
दुराग्रह पाल लेना 'नष्टबुद्धि' है. दरअसल
इस लघुकथा में गहन आत्म चिंतन है. इसी तरह का आत्मचिंतन गोकुल सोनी की अधिकांश
लघुकथाओं में दृष्टिगोचर होता है, और मान्यताओं के समीकरण, घुन, ठेकेदार, जीत का
दुःख, मन जीते जग जीत,दर्द, सहारा, गुंडे, कुलीन, धतूरे के बीज, अंध विश्वास, नाम
रोशन, और ट्रेफिक के नियम आदि लघुकथाओं में उभर कर सामने आता है. दो मंजिला मकान,
कारगिल, बस एक प्रश्न और भेदभाव लघुकथाएँ घटनाओं के माध्यम से जीवन के महीन
सूत्रों द्वारा सत्य को उद्घाटित करती है. भौतिक सुख सुविधाएं दूरियों की वजह बन
गयी है. एक वक्त था जब छोटे-छोटे कमरों के घर हुआ करते थे. कम जगह में भी संयुक्त
परिवार, साथ मिल कर रहा करते थे. 'प्राइवेसी' नामक शब्द से किसी का वास्ता नहीं
था. घर के प्रत्येक सदस्य एक दूसरे से अपने सुख-दुःख बांटा करते थे. एक को तकलीफ
हो तो दूसरा फ़ौरन निवारण को तत्पर. इस विरासत के खो जाने की टीस अनुभव होती है
लघुकथा 'दो मंजिला मकान' में.
मानव समाज केवल किसी एक युग का समाज
नहीं है. वह एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक जाने के अंतराल का समाज है. काल के यथार्थ
में संवेदना से छनकर आते आपसी व्यवहार का समाज है. मानवीय यथार्थ पर केंद्रित
लघुकथाएं अधिक लक्ष्य साधती है. मानवीय संवेदना का आधार लघुकथा में जरूरी सबसे
तत्व है. इन सभी विचारों की अभिव्यक्ति है लघुकथा 'एक मिथक की मौत'. ‘कारगिल’
युद्ध में सेनाओं की सहायता के लिए देश के नागरिक जहाँ एक तरफ मन प्राण से जुटे
हुए थे, वहीं कुछ स्वार्थी दिखावे के लिए किस हद तक नीचे गिर सकते हैं. बताती है
लघुकथा ‘कारगिल’. यह एक अलग तरह की लघुकथा है जो यथार्थ के करीब है. पिता का बेटे
को यह प्रलोभन देना, कि बेटा- गुल्लक फोड़ कर तुम कारगिल-युद्ध में मदद कर दो, हम
उसके बदले तुम्हें अधिक रुपये देंगे. इससे हम लोगों को प्रसिद्धि तो मिलेगी ही,
देशभक्त होने का श्रेय भी मिलेगा. बच्चा सबके सामने जाकर अपनी गुल्लक तोड़ता है और
कहता है कि मैं अपने गुल्लक के सारे पैसे कारगिल युद्ध में सहायता के लिए दान
करूंगा. इससे उसको और पिता को प्रसिद्धि मिलती है, परन्तु जब वह सेना में जाने की
बात करता है तो पिता उसे चांटा मारकर चुप करा देता है. तब ऐसी कलुषित प्रवृत्ति को
चिन्हित कर उस पर चोट करने के लिए गोकुल सोनी कारगिल लघुकथा लेकर आते हैं. छात्रों
के जीवन से खेलने वाले, अध्यापन कार्य से मुंह चुराने वाले अध्यापकों को चिन्हित करते हुए 'बस एक प्रश्न' लघुकथा लिखी गयी है.
इस में अध्यापक वर्ग में नैतिक हास को यह पूछकर आड़े हाथों लिया है
कि- गुरूजी आप हमे बस इतना बताइयेगा कि आपने जो मुफ्त की तनखा लेकर, हजारों बच्चों का भविष्य बर्बाद कर दिया, ये 'गर्व' की बात है, या 'शर्म' की. इस लघुकथा की
प्रस्तुति व्यंग्यात्मक लहजे की गई है. 'भेदभाव' लघुकथा बताती है, कि यदि कोई गरीब
भूखा व्यक्ति पेट भरने के लिए रोटी चुराता है, तो यह अपराध क्षमा के योय है,
परन्तु यदि यही चोरी 'भरे पेट वाला' करता है तो उसे कतई क्षमा नहीं किया जा सकता. मानवीय मूल्योंके संरक्षण
की यह लघुकथा अनोखी बन पड़ी है. 'शांतिपूर्ण थाना क्षेत्र' गहन मनोवैज्ञानिक आधार
पर रचित लघुकथा है जिसमे न्याय पाने की आकांक्षा लिए रिपोर्ट लिखाने आये व्यक्ति
को अपराधी की बर्बरता का वर्णन करते हुए ऐसे भयभीत किया जाता है, कि वह रिपोर्ट
लिखने का विचार ही त्याग देता है. यह लघुकथा मनोरंजक तो है ही, देश में बढ़ रहे
अपराधों पर पर्दा डालने की कुप्रवृत्ति को भी सामने लाती है. 'कारमोरेंट्स' लघुकथा दफ्तरों में व्याप्त
भ्रष्टाचार के स्तरों को सामने लाती है. संग्रह में कुछ बहुत छोटी-छोटी लघुकथाएं
भी हैं जो बहुत पैनापन लिए हुए अद्भुत शिल्प का नमूना हैं जैसे- लघुकथा, नजर,
जीवदया, दर्द, अथ विडाल कथा, गुंडा, पारितोषिक, श्वान, सावधानी आदि.
अंत में यही कहना होगा की प्रत्येक लघुकथा अपने आप में सम्पूर्ण,
सारगर्भित एवं अविस्मरनीय है. सभी लघुकथाओं का उल्लेख यहाँ संभव नहीं है.
लघुकथा-संग्रह साहित्य में विशिष्ट स्थान बनाने में सफल होगा, क्योंकि इन लघुकथाओं
में कथा-वस्तु का चुनाव, उत्कृष्ट शिल्प, कलात्मक आग्रह और सृजनात्मकता है. संवेदनाओं के विविध रंग दृष्टिगोचर हैं. कहीं
भी अतिरंजित विश्लेषण नहीं. गहन मानवीय संवेनाओं की अनुभूति से उपजी इन लघुकथाओं
में, लघुकथा के सभी मानक तत्वों अर्थात कथ्य का इकहरापन, भूमिका विहीनता,
संक्षिप्तता, सांकेतिकता, दर्शन-बोध से युक्त, एक ही कालखंड में कथा-संयोजन तथा
चरित्र-गठन के प्रति सजगता की अनिवार्यता का पूरे मनोयोग से पालन किया गया है. एक
समर्थ लघुकथा संग्रह के रूप में इस पुस्तक को सदा याद किया जाएगा. शुभकामनाओं के
साथ अगली पुस्तक की प्रतीक्षा में.
फोन- 9575465147, मेल- roy.kanta69@gmail.com