अम्मा की सीख में निहित जीवन मूल्य
'अम्मा अभी जिंदा है' लघुकथा संग्रह आश्वासन देती है कि भूमंडलीकरण और वैश्वीकरण
के इस दौर में अम्मा की सीख में निहित जीवन मूल्य अभी तक सुरक्षित हैं। भारतीय समाज
में माँ का दर्जा ब्रह्मा का दिया गया है जो सृजन के साथ पोषण करती है। सामाजिक परिवेश
के अनुसार वह अपने बच्चे के व्यक्तित्व को भी गढ़ती है।
लघुकथा संग्रह के रूप में पुस्तक इस अर्थ में भी महत्वपूर्ण
है कि वैचारिक दृष्टिकोण से सांस्कृतिक विरासत की महत्ता को स्वीकार करते हुए आगत (मुजफ्फर
इकबाल सिद्दीकी) द्वारा विगत (अम्मा
के संस्कार) को तुलनात्मक दृष्टिकोण से आंकने के पश्चात आदरांजलि
स्वरूप दिया गया है। कथा साहित्य में 'अम्मा जिंदा है' लघुकथा
संग्रह अपनी अलग शैली, अलहदा सोच को रचनाओं के माध्यम से रेखांकित करती है।
हिन्दी
गद्य साहित्य पर अंग्रेजी साहित्य की छाप रही है, इस
बात पर मेरा हमेशा मतभेद रहा है इसका मुख्य कारण भारत में साहित्य का आधार उसके चारों
वेद हैं जो विश्व में पहला प्राचीन साहित्य है| यह उस प्रकाश स्तम्भ की तरह है, जिससे भारत की साहित्य परम्परा सदा से जगमगाती रही
है| प्रथम वेद ‘ऋग्वेद’ एवं
अन्य दो ‘सामवेद’ और
‘अथर्ववेद’ का आधार ज्ञान है जो पद्यात्मक है| ‘यजुर्वेद’ में जो गद्यात्मक मन्त्र हैं वह विश्व के समस्त गद्य
साहित्य का आधार है।
सृष्टि
में जितनी भी अनुभूतियाँ हैं वही रचनाओं की आधारभूमि है| पाँचों इन्द्रियाँ इन्हीं अनुभूतियों को ग्रहण करती
हैं जो चिंतन के गर्भ से भ्रूण के सामान निषेचित होती हैं| यह जन्म लेने की प्रक्रिया में मीलों का सफर तय करतीं
हैं| धरती के कठोर धरातल से उठतीं, जनमतीं और बढ़तीं हुई मन-मष्तिष्क
में खदबदातीं रहती हैं| पीड़ादायक स्थिति
पैदा करतीं हैं|
अंतःचित्त में उत्पन्न पीड़ा अभिव्यक्ति के लिए माध्यम
की तलाश में भटकने को विवश होकर शब्दों का जामा पहनने को आतुर होती है| इस प्रकार की घटनाएँ स्वाभाविक रूप में घटती रहतीं
हैं और रचना निरंतर अपना आकार ग्रहण करती रहती है| यह प्रक्रिया रचना के प्रसव पीड़ा को शाब्दिक अर्थ
देती है| अर्थात हम कह सकते हैं कि मनोभावों का सारस्वत उत्सर्जन
ही सृजन है|
परिवेश
से प्रभावित होकर समाज की पृष्ठभूमि को मजबूत बनाए रखने के उद्देश्य से गढ़ी गयी छोटी
कथाएँ आकारीय प्रस्तुतिकरण में बदलाव ग्रहण करती उपनिषदों, पौराणिक प्रसंगों से बीसवीं सदी की लघुकथाओं तक का
सफर, युगों का है| इसमें अनुभूतियों के विभिन्न स्वरुप दृष्टिगोचर हैं| अतः नैतिक मूल्यों की रक्षा करना, हिन्दी लघुकथा का भी अभिप्राय है|
कथा
साहित्य में उपन्यास और कहानी से भिन्न लघुकथा सिर्फ आकार और प्रकार से अपना अर्थ ग्रहण
नहीं करती बल्कि कथ्य में निहित दृष्टि बिंदु और उसमें चैतन्यता का बोध ग्रहण कर, अर्थ प्रदान करती है|
'अम्मा अभी जिंदा है' में मनोवैज्ञानिक तथ्यों पर गहनता से अध्ययन करने के उपरांत, रचनाएँ बुनी गई हैं इस कारण ये रचनाएं समस्यामूलक
साबित होंगी| रचना में चित्रात्मक प्रस्तुति कथा की रोचकता को पाठकों
में बनाये हुए है| लेखक मुजफ्फर इकबाल सिद्दीकी का उद्देश्य, रचना के जरिये पाठकों के ह्रदय तक पहुँचना है| सामाजिक विषयों पर समाज सुधार की दृष्टि से वे योजना
बनाते हैं| आम आदमी के जीवन से जुड़ी तस्वीरों का सरल और तरल सम्प्रेषण
मुजफ्फर इकबाल सिद्दीकी की उपलब्धि है|
लघुकथा
क्या है? जानने से अधिक जरूरी है। साहित्य क्या है? को जानना समझना| सबके हित में साहित्य का अर्थ निहित है| जीवन की कटु आलोचना और भर्त्सना साहित्य नहीं कहलाता
बल्कि विसंगतियों को चिन्हित कर उस पर संवेदनशील दृष्टि स्थापित करना या प्रेरित करना
साहित्य है और अति संवेदनशील होना रचनाकार की पहचान| शब्दों का शिल्पकार लेखक विश्व के रचियता ब्रह्मा
और देवताओं में शिल्पकार विश्वकर्मा के समकक्ष दर्जा प्राप्त करता है| इस कारण जरूरी है कि लेखकीय कर्म में प्रवेश से पूर्व
इससे जुड़े सारे सन्दर्भों को पढ़ लिया, समझ
लिया जाए|
'अम्मा अभी जिंदा है' में
इसी समझ के साथ मुजफ्फर इकबाल सिद्दीकी 'असमर्थ', 'कोरा
कागज', 'कसम', 'उम्मीद की किरण', 'सदाबहार', 'सपनों
का सौदा', जैसी लघुकथाएँ लेकर आते हैं।
'सपनों का सौदा' लघुकथा
में कॉलेज में पढ़ रही बेटी के लिए अच्छे घर से रिश्ता आ जाने के बाद मनोस्थिति को
चिन्हित किया गया है। भारतीय समाज में बेटियों की शादी एक विसंगतिपूर्ण स्थिति है।
इस स्थिति पर नवीन मान्यता गढ़ती है यह लघुकथा।
इस
पंक्ति में पिता की चिंता पर गौर करें, "...अरे शबाना की अम्मा, तुम
समझती क्यों नहीं कि मेरे रिटायरमेंट को केवल पाँच साल बाकी हैं। इसी में सब मैनेज
करना है। शाहिद तो अभी बारहवीं दर्जे में ही है। अगले साल उसका बी.टेक
शुरू होगा। मुझे भी तो कुछ प्लान बनाकर चलना पड़ेगा। शबाना की शादी का बोझ तो हमेशा
बरकरार ही रहेगा न। आज उससे बात करो।…….
…. हमें सिद्दीकी साहब
को भी जवाब देना है। एक साल से मैं टाल रहा हूँ। बहुत अच्छा रिश्ता है। हाथ से निकल
गया तो हाथ मलते रह जाएंगे। लड़का भी दुबई में है। शान-शौकत
से रहेगी मेरी बेटी। रहा पढ़ाई का तो, ग्रेजुएशन तो हो ही
गया है। कोई अनपढ़ तो नहीं है।"
इस
लघुकथा की पात्र शबाना एम.बी.ए. करना
चाहती है। माता पिता की सोच से अलग उसने अपने लिए कुछ सपने देखें हैं। लेकिन उसके देखे
गए सपने उस समाज में क्या महत्व रखता है जहाँ घर में कन्या संतान के आने की खबर मातम
का माहौल बना जाता है। इसके पीछे के कारणों में मुख्य रूप से यह मान्यता है कि 'बेटी
पराया धन है।' जन्म देने वाले माता-पिता
बेटियों को इसी मान्यता के अनुसार पराई अमानत समझकर पालते हैं। पराई अमानत में ऊंची
पढ़ाई का खर्च क्यों और कहां से करें जबकि तिलक और दहेज का खर्च वैसे ही बेटियों के
पालक पर गाज बनकर गिरता रहा है। ऐसे परिवेश में यह लघुकथा उन पंक्तियों में वैचारिक
रूप से एक क्रांति लाने में सफल हो रही है जब शबाना की अम्मा अपना फैसला शौहर को सुनाती
है कि, "हाशमी साहब, सपने
साकार करने में और सिर्फ शान शौकत से जीने में बड़ा फर्क है। मैंने भी आपके साथ इज्जत
और शान शौकत की जिंदगी गुजारी है लेकिन एम.ए., बी.एड. होने
के बाद भी मेरी नौकरी करने की तमन्ना अभी तक अधूरी ही है। मैं तो कहती हूँ हो जाने
दीजिए उसका एमबीए का सपना पूरा। सिद्दीकी साहब से कुछ दिन और इन्तजार करने को बोलिए, मान
जाते हैं तो ठीक है वर्ना मैं अपनी बेटी के सपनों का सौदा करने को कतई तैयार नहीं हूँ।
अभी मैं शबाना से इस बाबत कोई बात करना नहीं चाहती।"
लघुकथा
का प्रमुख प्रयोजन वैचारिक क्रांति लाने से है। 'अम्मा
अभी जिंदा है' में ऐसी क्रांति कई जगहों पर व्यक्त-अव्यक्त
रूप में दर्ज है।
उपन्यास
और कहानी का विस्फोट पुस्तक की कथाओं में नजर आते हैं।
कथा
साहित्य में उपन्यास और कहानी के बाद तीसरी विधा लघुकथा है| इन तीनों विधाओं में भिन्नता के सन्दर्भ में इन तीनों
में अंतर को जानना जरूरी है|
लघुकथा
सन्दर्भ में विजयबहादुर सिंह से मुलाकात के वक्त अपने निज निवास पर बातचीत करते हुए
हिन्दी के प्रसिद्ध आलोचक विजयबहादुर सिंह लघुकथा का विश्लेषण करते हुए अपना अभिमत
इस प्रकार रखते हैं कि-
"आपको पहले यह तय करना पड़ेगा कि लघुकथा
कहानी से भिन्न कैसे है? कथा शब्द दोनों
तरफ है| यह बात तो बहुत साफ़ है| इसका आकार कहानी से कितना भिन्न होगा? क्या उसको आप चार पृष्ठ तक ले जायेंगी? या तीन पृष्ठ तक ले जायेंगी या दो ही में ख़त्म कर
देंगी? इसकी कोई सीमा रेखा तो बनानी पड़ेगी| वह तीन पन्ने तक तभी जा सकती है| जब आपके पास घटना क्रम हो, तो इसका मतलब घटनाक्रम उसमें होगा पर विस्तार नहीं
होगा| एक बात को जितने कम से कम शब्द में आप कह सकती हैं
वह भी अपनी आत्म शैली में, उतनी ही लघुकथा
है| एक बात तो ये समझ लें| दूसरी बात ये है कि जो कहा गया है, वह अपने आप में, अभिव्यक्ति में पूर्ण है कि नहीं| अभिव्यक्ति में पूर्णता का मतलब यह है कि जो आप कहना
चाहती थी वह पूरा कह पायी हैं या नहीं| फार्म
तो बाँध दिया कि एक पेज में कहना है| लेकिन
फिर भी बात आप नहीं कह पायीं| तीसरी बात यह है
कि अगर आपने कहा है तो वह कितनी प्रभावशाली है? ठीक है न! लघुकथा
की उत्कृष्टता तब साबित होगी जब वह कम से कम शब्दों में अधिक से अधिक बात या अनुभव
पाठकों में पहुँचाने में कामयाब होगी अन्यथा वह लघुकथा काहे की?"
वरिष्ठ
साहित्यकार, आलोचना शास्त्र में प्रथम पंक्ति के महत्वपूर्ण आलोचक
विजय बहादुर सिंह के उपरोक्त विचार इस दृष्टि से अधिक महत्वपूर्ण हैं कि ये विचार लघुकथाकार
के नहीं हैं| लघुकथा संदर्भ में यह दृष्टि साहित्य के उस स्वतंत्र चिन्तक का है जो
लघुकथा को अपने नजरिये से देखता है| जरूरी है कि घटनाक्रम
से उपजी संवेदनाओं की भूमि तैयार करने से पहले रचनाकार स्वयं को टटोल कर देखे कि समुद्र
में उठती लहरें उसे कहाँ तक बहा ले जाने में सक्षम हैं? मेघ की गर्जन, बाढ़ और भूकंप का कोलाहल, सृष्टि का आक्रोश, हवाओं का इठलाना, पशु-पक्षी, पेड़-पौधों में निहित संवेदनाओं
को स्वयं की निजी अनुभूतियों से जोड़ कर कितना अनुभव कर सकता है? यह समझना जरूरी है। यही तो लेखकीय गुण है| व्यक्त को साधारण मनुष्य भी जान-सुन
लेता है, अव्यक्त को जान-सुन
लेने की समझ और उसे एक सामान्य पाठक के ह्रदय तक पहुँचाने का गुण, निश्चित ही एक साधारण मनुष्य को रचनाकार बनाता है|
मुजफ्फर
इकबाल सिद्दीकी इस बात को भली-भांति समझते हैं कि जैसा देखा, लिख दिया, इसमें
रचनात्मक अभिव्यक्ति नहीं हैं। न ही पौराणिक प्रसंगों को जस का तस उठाकर रख देना लेखकीय
कौशल है|मुजफ्फर इकबाल सिद्दीकी की नजर में किसी दूसरे के चिंतन को अपने लेखन का आधार मानना गलत
है| यह भी समझना होगा कि प्रभावित चिंतन और मौलिक चिंतन
में बहुत बड़ा फर्क होता है|वे जानते हैं कि जिसने इस फर्क को समझ लिया वही लेखन में सम्मानित
स्थान प्राप्त करता है|
सोशल
मिडिया में पाठकों की सबसे पसंदीदा विधा लघुकथा है| इसके पीछे कई कारण है| अपनी-अपनी, अलग प्रकार की दुनिया में मग्न रहने वाला समाज, वर्तमान समय में भूमंडलीकरण के दौर से गुजर रहा है| अलग-थलग रहने के पश्चात्
भी उसे आसानी से वह सब प्राप्त हो रहा है जिसकी वह कामना करता है| एशिया, यूरोप
एवं विश्व के अन्य भागों से रहन-सहन के साथ ही परम्पराओं, संस्कारों और संस्कृति भी बिना कस्टम चुकाए आयातित
की जा रही है|
वैचारिक
संक्रमणों से संक्रमित समाज अपनी जमीनी हकीकत को भूल कर विशिष्ट प्रकार के वैश्विक
समाज बनने-बनाने निकल पड़ा है| घर से निकला समाज जब बाहरी आब-ओ-हवा
को सही तरीके से नहीं पहचान पाता तो अवसाद से घिर जाता है| अवसादों में घिरी मनोवृत्तियों को दरकार होती है बौद्धिक
चेतनता की, जिसे वह साहित्य से प्राप्त करता है| साहित्य समाज को विवेकशील बनाता है| तर्क संगत तरीके से अपनी बात रखना, अच्छे-बुरे की पहचान करना, सिखाने के साथ ही सही-गलत
में भेद भी करना भी सिखाता है|
भटके
हुए समाज को सही राह दिखाने का काम साहित्य की जिम्मेदारी है| शिक्षा का बढ़ता अनुपात अभिव्यक्ति के स्वर की सघनता
का कारण है| इस जिम्मेदारी का निर्वहन करने में आज के युवा रचनाकार
मुजफ्फर इकबाल सिद्दीकी सक्षम हैं|
आपकी एक और लघुकथा है 'असमर्थ'। इस लघुकथा में पिता के प्रति पुत्र के मन में उपजते आदर
को सहज रूप में बुना गया है। जेब में रूपए होने के बावजूद पात्र का खिलौने नहीं खरीद
पाने के पीछे मनोस्थिति को इस लघुकथा के माध्यम से बारीकी से रेखांकित कर देती है।
नौकरी पर लगने के बाद बेटे की नजर उस खिलौने पर पड़ती है जिसे बचपन में महंगी होने
के कारण चाबी से चलने वाले हवाई जहाज को खरीदने की उसकी जिद को पिता पूरी कर पाने में
असमर्थता जाहिर करते हैं। और आज वह समर्थ होने के बावजूद पिता से फोन पर खिलौने की
ऊंची कीमत बताते हुए खरीदने हेतु स्वीकृति चाहता है। उसे लगता है कि आज भी उसके पिता
उस कीमत पर सहमत नहीं होंगे और हवाई जहाज खरीदने से मना कर देंगे। लेकिन पिता सहमत
होते हुए उसे स्वीकृति प्रदान करते हैं कि वह हवाई जहाज खरीद ले। पिता के स्वीकृति
मिल जाने के बाद बेटे को बचपन के उन दिनों अपने पिता की आर्थिक तंगी, उनकी
असमर्थता का एहसास होता है और वह हवाई जहाज नहीं खरीद पाता है।
पिता
और पुत्र के बीच के सम्बन्ध का महीन विश्लेषण किया गया है। यह लघुकथा समर्थ लघुकथाकार
के पहचान को कायम करती है।
'माँ
के आंसू' नशामुक्त समाज की कामना करती है। लघुकथा पारिवारिक
पृष्ठभूमि पर रची गई है जिसमें नशा करने वाले दौलतमंद पिता का उसके बच्चे के साथ संवाद
स्थापित हुआ है।
पर्यावरण
से जुड़ी समस्याओं, एकाकीपन की घुटन, स्त्री
पुरुष सम्बन्ध, पारिवारिक-सामाजिक
पृष्ठभूमि से ताल्लुक रखती तसल्ली,
एक समझौता सा, फर्ज, धुएँ
का गुबार, विश्वास, त्याग, वास्तविकता, जरूरत, फानूस, अनुभव, भविष्य
इत्यादि अनेक लघुकथाएँ अपनी विविधता को लेकर मूल्यपरक कथ्य प्रस्तुत करती है। मुजफ्फर
इकबाल सिद्दीकी की रचनाओं में जीवन के अनुभव हैं। वे किसी अन्य के खांचे की देखा देखी
नहीं करते बल्कि अपनी दृष्टि से अपनी लकीरें खींचते हैं। वह छोटी है या बड़ी, इस
बात की भी परवाह नहीं करते हैं और यही बातें कारण बनती उनके व्यक्तित्व को सुदृढ़ बनाने
में कामयाबी हासिल करने में।
'अम्मा अभी जिंदा है' लघुकथा
साहित्य में एक नवीन दृष्टि से अभिप्रेरित संग्रह है। निश्चित रूप से यह पाठकों में
लोकप्रिय होगी ऐसा मेरा विश्वास है। शुभकामनाओं सहित…..
(कान्ता रॉय)
प्रशासनिक
अधिकारी
हिन्दी भवन, भोपाल
निदेशक
लघुकथा
शोध केंद्र, भोपाल