स्त्री शिक्षा : एक गहन विषय
स्त्री शिक्षा : एक गहन विषय
कान्ता राॅय
मो. 9575465147
शारदा एक सरकारी दफ्तर में कर्मचारी है। उसकी तीन लड़की है। जैसा कि भारत में आम तौर पर देखा जाता है, उसके परिवार में भी बड़ों, बुजुर्गों का बोलबाला है। यही कारण था कि घर के बड़ों ने उसकी बड़ी लड़की जो मात्र सोलह साल की थी, उसकी शादी तय कर दी गई। और इसके लिए लड़की की माँ की मरजी जानने की जरूरत भी महसूस नहीं हुई। शारदा मन ही मन अपनी विवशता पर कुढ़ उठी।
मेरे समझाने पर उसने अपने घर में इस बात का विरोध किया और शादी रुकवा दी। अचानक से उसके इस फैसले ने घर के लोगों को हैरानी में डाल दिया था। इस बात को पांच वर्ष बीत गए हैं। उसकी लड़की अभी एम. बी.ए. कर रही है।
ऐसी स्थिति में प्रश्न उठता है कि स्त्री-शिक्षा के मायने क्या है? क्या यह नारी के आत्मसम्मान का प्रश्न है?
स्त्री को स्वयं अपने जीवन के मायने तय करने होंगे। क्योंकि दूसरों पर निर्भरता को कम करना होगा।
नारी शिक्षा को लेकर समाज जागरूक अवश्य हुआ है, लेकिन सोच का स्तर में सुधार की अभी बहुत गुंजाईश बाकी है।
शहरों के अपेक्षा ग्रामीण क्षेत्रों में और निम्न मध्यम वर्गीय लोगों में अभी जागरूकता की आवश्यकता है।
मैं अपने कार्य स्थल में महिलाओं से मिलती रहती हूँ। मैंने महिलाओं में स्त्री-शिक्षा के सन्दर्भ में, उनके सोच में भटकाव महसूस करती हूँ। अफसोसजनक परिस्थितियों से जूझती शिक्षित स्त्रियों को देख कर मन आहत भी होता है। अपने स्तर पर मेरे द्वारा नारी शिक्षा के प्रति जागरूकता के कई सफल और असफल प्रयास जारी रहता है। हार कर बैठती नहीं,सतत प्रयासरत हूँ।
लड़कियों को सिर्फ इतना पढ़ाना कि अच्छे घर में शादी हो जाये, सोच के इस स्तर पर मन क्षोभ से भर उठता है।
क्या सिर्फ शादी वजह होनी चाहिए स्त्री शिक्षा के लिए? ...बजाय इसके उसकी आत्म निर्भरता क्यों नहीं? क्यों शादी को ही जीवन का एक मात्र उद्देश्य बना कर चलता है हमारा समाज?
क्या नारी-जीवन का पर्याय शादी, बच्चे, बुढ़ापा, तिरस्कार और फिर मौत का इंतजार। क्या बस यही जीवन का एक मात्र निर्रथक उद्देश्य?
प्रश्न है यह उस समाज से, जो सनातन से स्त्री दमन की पक्षधर रही है। परिवार बसाना ही क्यों एकमात्र उद्देश्य निहित है?
हम क्यों ना शिक्षा ग्रहण को समाज उत्थान का विषय बनाए! शिक्षा को समाज में सेवा देने का विषय बनाये।
जिन लड़कियों का किसी कारणवश समय पर शादी नहीं हो पाया उसको गुनहगार साबित करना, उसकी अपनी शारीरिक सुंदरता-असुंदरता के लिए कुंठित होना, क्या यह सही है?
मैं नहीं मानती कि एक अर्थपूर्ण जीवन जीने के लिए शादी जरूरी है।
जिंदगी में शादी, जीवन का एक हिस्सा भर होना चाहिए, शादी के लिए जिंदगी नहीं।
शादी, परिवार, ये वो बंधन है जो आपकी सामाजिक उत्थान के लिए सह भागिदारिता को रोकती या कम करती है। अपवादों को छोड़ दें तो आम तौर पर स्त्री सक्षम होते हुए भी सामाजिक उत्थान से जुड़ नहीं पाती, कारण उसका परिवार के प्रति प्रतिबद्धता।
परिवार सेवा का निर्वहन सदा से नारी करती आई है, इसलिए भी अब कामकाजी होने के बावजूद उसको अपनी प्रतिबद्धता कायम रखनी ही पड़ती है।
आयुषी एक बहुत बड़े कम्पनी में मैनेजर है। खाना बनाने से बच्चे की परवरिश उसकी ही जिम्मेदारी है। सुयश हमेशा पुरूष होने का फायदा उठा कर अपनी जिम्मेदारी से बच निकलते है। कभी कुछ काम कर भी देते है तो उसका बखान करते नहीं अघाते।
नारी जागरूकता का तो यह हाल है कि पढ़ लिख कर स्वंय स्त्री का मन पराधीनता स्वीकार करने को आतुर है।
कहने का आशय यह बिलकुल भी नहीं हैं कि परिवार से प्यार न करें, लेकिन उस प्यार को स्वयं पर इतना हावी मत होने दें कि अपना आत्मसम्मान ही ना बचें।
पितृसत्तात्मक व्यवस्था कई बार स्त्री समर्पण को गुलामी के स्तर तक का दर्जा देने से भी नहीं चुकती। मैंने देखा है कि कई कामकाजी महिला अपना पूरा वेतन पति को दे देती है, और फिर जरा-जरा सी खर्च के लिए रकम मांगने पर तिरस्कार सहती है।
स्त्री अपना प्यार सदा समर्पण बन कर लुटाती रही है और पुरूष सदा ही उस प्यार को कमजोरी मानता रहा है।
आज का पुरूष करता तो है बराबरी और समान अधिकार की बात लेकिन सच्चाई अभी कोसों दूर है।
पुरूष, बेटी के मामले में जितना उदार हो जाता है उतना ही संकीर्ण वह पत्नी के लिए उजागर होता है।
स्त्री को अपना सम्मान खुद कमाना होगा। शादी जीवन का पर्याय नहीं है यह समझना होगा।
जीवन की उत्कृष्टता जीवन मुल्यों को समझने में है।
"स्त्री जागो! तुम शिक्षित बनो समाज के लिए!
तुम शिक्षित बनो देश उत्थान के लिए !
तुम शिक्षित बनो नारी सम्मान के लिए !
नारी में निर्माण की अद्भुत क्षमता है।
अब स्त्री को खुद साबित करना है कि नारी जब भी उठती है नये निर्माण बनाती है।
कान्ता रॉय
निदेशक, लघुकथा शोध केंद्र, भोपाल
सम्पर्क : 54\A, सेक्टर - C,
बंजारी, कोलार रोड, भोपाल (म.प्र.)- 462042
मो. 9575465147,
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